मुख्य विषय (Main Topic)
इस अध्याय का मुख्य विषय है – तत्वों का वर्गीकरण (Classification of Elements) एवं उनकी भौतिक व रासायनिक गुणों में आवर्त परिवर्तन (Periodicity in Properties)। आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार, तत्वों की प्रवृत्तियाँ परमाणु संख्या (atomic number) के आधार पर आवर्तित होती हैं, और इसी आधार पर आधुनिक आवर्त तालिका तैयार की गई है।
प्रमुख उप-विषय
- तत्वों का वर्गीकरण क्यों आवश्यक है?
आज लगभग 118 तत्व ज्ञात हैं, इसलिए उनका व्यवस्थित अध्ययन आसान बनाने हेतु वर्गीकरण की आवश्यकता है। इसी से जीवनत्व सिद्धांत आधारित व्यवहार को समझना संभव होता है।
Dobereiner की त्रैम (Triads), Newlands की Law of Octaves पहले प्रयास थे, लेकिन केवल सीमित तत्वों पर लागू थे।
फिर Mendeleev ने 1869 में तत्वों को उनके परमाणु भार क्रम में व्यवस्थित कर Modern Periodic Table की नींव रखी। उन्होंने गुप्त तत्वों के लिए स्थान छोड़े और भविष्यवाणी की क्षमता दिखाई। :contentReference[oaicite:1]{index=1}
Moseley (1913) द्वारा परमाणु संख्या पर आधारित तालिका की पुष्टि हुई – “तत्वों के भौतिक व रासायनिक गुण परमाणु संख्या की आवर्तक क्रिया होते हैं”। :contentReference[oaicite:2]{index=2}
तालिका में 18 समूह (vertical) व 7 अवधि (horizontal) शामिल हैं; s‑, p‑, d‑ और f‑ब्लॉक तत्वों का विभाजन इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर आधारित है। :contentReference[oaicite:3]{index=3}
परमाणु क्रमांक >100 वाले तत्वों के अस्थायी नाम जैसे ununennium, ununseptium आदि IUPAC के द्वारा निर्धारित किए गए। :contentReference[oaicite:4]{index=4}
इलेक्ट्रॉन शैलों (shells/subshells) में इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था से तय होता है कि तत्व s‑, p‑, d‑ या f‑ब्लॉक में आता है। इससे वर्गीकरण एवं गुणों की भविष्यवाणी संभव होती है। :contentReference[oaicite:5]{index=5}
तत्वों की:
- परमाणु त्रिज्या (Atomic radius)
- आयनीकरण प्रवृत्ति (Ionization enthalpy)
- इलेक्ट्रॉन ग्रहीत प्रवृत्ति (Electron gain enthalpy)
- इलेक्ट्रोननकारिता (Electronegativity)
- रासायनिक प्रतिक्रियाशीलता (Chemical reactivity)
- अवधि में बाएँ से दाएँ → radius घटता है, ionization एवं electronegativity बढ़ती है
- समूह में ऊपर से ↓ → radius बढ़ता है, ionization एवं electronegativity घटती है
विस्तृत व्याख्या (~1000 शब्द)
आज जिन 118 तत्वों को जाना जाता है, उनके गुणों को व्यक्तिगत रूप से याद करना व्यावहारिक नहीं है। इसलिए, तत्वों को उनकी समानताओं के आधार पर वर्गीकृत करना आवश्यक हो गया, ताकि पढ़ाई सरल, सुव्यवस्थित और पूर्वानुमानक्षम हो।
प्राकृतिक दुनिया में गुणों का आवर्तन (periodicity) देखा गया है—कुछ तत्वों की विशेषताएँ अनुक्रम में दोहराई जाती हैं। यदि हम तत्वों को उचित तरीके से व्यवस्थित करें, तो हम गुणों की पैटर्न पहचान सकते हैं और अनजाने तत्वों के व्यवहार की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
पहले प्रयासों में, Dobereiner की त्रैम व Newlands की ऑक्टेव कानून सीमित पैमानों तक ही लागू हुई। Mendeleev ने तत्वों को उनके atomic weight के आधार पर व्यवस्थित किया और उन स्थानों को छोड़ा जहाँ अभी तत्व ज्ञात नहीं थे। इससे उन्होंने नए तत्वों का अनुमान लगाया और तालिका को भविष्य-उन्मुख बनाया।
लेकिन जैसे-जैसे वैज्ञानिकों ने पता किया कि परमाणु संख्या (atomic number) ही तत्वों की वास्तविक पहचान है, Moseley ने आधुनिक आवर्त नियम की पुष्टि की, जिसके अनुसार – “तत्वों के गुण उनके परमाणु संख्या की आवर्तक क्रिया हैं”। यही आधार आज की आधुनिक तालिका की संरचना है।
आधुनिक तालिका की संरचना में:
- समूह: एक ही कॉलम में तत्वों में समान valence shell इलेक्ट्रॉन विन्यास व रासायनिक गुण होते हैं
- आवर्त: एक ही पंक्ति में तत्वों में वृद्धि क्रमबद्ध परमाणु संख्या और नई शैलें होती हैं
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास यह निर्धारक होता है कि तत्व किस ब्लॉक (s/p/d/f) में आता है। यह विन्यास यह भी संकेत देता है कि तत्व धातु, अधातु या मेटालॉइड हो सकता है। जैसे, s‑ब्लॉक के तत्व नरम, उच्च प्रतिक्रियाशील धातु होते हैं; p‑ब्लॉक में अधातु एवं मेटालॉइड आते हैं; d‑ब्लॉक में संक्रमण धातुएँ होती हैं।
इसके बाद, Periodic trends के माध्यम से यह समझा जाता है कि:
- Atomic radius अवधि में बाएँ से दाएँ घटता है – क्योंकि nucleus का चार्ज बढ़ता है
- Ionization enthalpy बढ़ती है – इलेक्ट्रॉन हटाने में ऊर्जा अधिक लगती है
- Electron affinity एवं electronegativity भी सामान्यतः बढ़ती हैं
- समूह में ऊपर से नीचे – radius बढ़ता है, ionization & electronegativity घटती है
इस अध्याय की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसकी सहायता से न केवल ज्ञात तत्वों की प्रवृत्तियाँ ज्ञात होती हैं, बल्कि नए तत्वों के गुणों का अनुमान भी लगाया जा सकता है। यही कारण है कि यह अध्याय न केवल कक्षा 11 बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं (JEE/NEET) में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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